Multiple Languages
Nij bhasha unnati ahai, sab unnati ko mool -।
Bin nij bhasha gyaan ke, mitat n hiye ko sool -‖
Through this couplet, eminent poet, Bhartendu Harishchandra very well relays how crucial mother-tongue becomes in cultivating an individual. And that’s why, there are 22 modern languages in India recognised by constitution of India.
India might be world’s second most English-literate country, but this knowledge of global language cannot be allowed to create an apartheid mindset towards other Indian languages. Since, most of the students in India are still studying in vernacular languages, Gyansrota doesn’t focus on English as the only medium of instruction thus preventing majority of the students from enjoying the benefits of edutech.
Let us point it out, R&D cell of Gyansrota has found that most of the times, when students transcend to Higher Secondary, their course language changes from vernacular to English. This has caused a great dip in academic results… even for the brightest of minds.
To avoid such outcomes, Gyansrota provides the subject in vernacular as well as English for Higher Secondary students. So that they can compare and don’t get thrown off by terminologies… Thus, they become more confident in classrooms.
After all, most of the world-renowned scholars from India started their education in one of the major Indian languages. “If you want to touch a person’s heart, talk in his language.”
ভিন-ভিন ভাষা
“নিজ ভাষা উন্নতি অহে, সব উন্নতি ক’ মূল ।
বিন নিজ ভাষা জ্ঞান কে, মিটত না হিয়ে ক’ শূল ‖”
সু-প্ৰশিদ্ধ কবি ভৰতেন্দু হৰিশচন্দ্ৰৰ এই মহান বাণীয়ে এই কথা সুস্পষ্টভাৱে প্ৰতীয়মান কৰে যে এজন ব্যক্তিৰ উৎকৰ্ষ সাধনৰ বাবে মাতৃভাষা কিমান বেছি আৱশ্যকীয়। সেইবাবে বৰ্তমান ভাৰতবৰ্ষত সংবিধান স্বীকৃত ২২ টা ভাষা আছে।
ইংৰাজী শিক্ষাৰ প্ৰসাৰৰ ক্ষেত্ৰত ভাৰতবৰ্ষ বিশ্বৰ ভিতৰত দ্বিতীয় হ’ব পাৰে, কিন্তু এই বিশ্বজনীন ভাষাটোৰ জ্ঞানৰ পৰিসৰে দেশৰ আন-আন স্থানীয় ভাষাৰ প্ৰতি অৱহেলাৰ সৃষ্টি কৰিবলৈ এৰি দিব নোৱাৰি। কিয়নো বৰ্তমানেও ভাৰতবৰ্ষৰ বহুসংখ্যক ছাত্ৰ-ছাত্ৰীয়ে মাতৃভাষাত বা স্থানীয় ভাষাৰ মাধ্যমত শিক্ষা গ্ৰহণ কৰি আছে। গতিকে জ্ঞানস্ৰোতে কেৱল ইংৰাজী ভাষাৰ মাধ্যমতেই শিক্ষাপ্ৰদান কৰাৰ ক্ষেত্ৰত মনোনিৱেশ নকৰে, বৰঞ্চ শিক্ষাৰ্থীসকলক নিজৰ মাতৃভাষাত আধুনিক শিক্ষা প্ৰযুক্তিৰ জৰিয়তে শিক্ষা গ্ৰহণত সুবিধা প্ৰদান কৰে।
এই কথাটো ফঁহিয়াই চোৱা যাওক। জ্ঞানস্ৰোতৰ গৱেষণা-বিকাশ শাখাই বিচাৰি পাইছে যে বহুসময়ত ছাত্ৰ-ছাত্ৰীসকলে উচ্চ-মাধ্যমিক পৰ্য্যায়ৰ পৰা উচ্চতৰ মাধ্যমিক পৰ্যায়লৈ যাওতে তেওঁলোকৰ শিক্ষা গ্ৰহণৰ মাধ্যম মাতৃভাষাৰ পৰা ইংৰাজী ভাষালৈ সলনি হয়। ইয়াৰ বাবে মেধাবী ছাত্ৰ-ছাত্ৰীসকলৰ ক্ষেত্ৰটো শৈক্ষিক ফলাফলৰ অৱনতি হোৱাটো পৰিলক্ষিত হৈছে।
এনেবোৰ ফলাফল পৰিহাৰ কৰিবৰ বাবে জ্ঞানস্ৰোতে উচ্চতৰ মাধ্যমিকৰ ছাত্ৰ-ছাত্ৰীৰ বাবে বিষয়সমূহৰ পাঠদান মাতৃভাষাৰ উপৰিও ইংৰাজী ভাষাত প্ৰদান কৰাৰ ব্যৱস্থা কৰিছে যাতে তেওঁলোকে তুলনা কৰিব পাৰে আৰু শব্দাৱলীৰ কাৰণে পিছ পৰি ৰ’ব লগা নহয়। এইদৰে তেওঁলোকে শ্ৰেণীকোঠাত অধিক আত্মবিশ্বাসী হৈ উঠিব পাৰে।
মুঠৰ ওপৰত, ভাৰতবৰ্ষৰ বহুজন সু প্ৰশিদ্ধ/প্ৰথিতযশা বিদ্যাৱান ব্যক্তিয়ে তেওঁলোকৰ শিক্ষাগ্ৰহনৰ পাতনি মেলিছিল দেশৰ যি-কোনো এটা সংবিধান-স্বীকৃত স্থানীয় ভাষাত বা মাতৃভাষাত। গতিকে কোৱা হয় “যদি এজন ব্যক্তিৰ হৃদয় স্পৰ্শ কৰিব খোজা, তেওঁৰ মাতৃভাষাত তেওঁৰ লগত কথোপকথন কৰা”।
একাধিক ভাষা
“নিজ ভাষা উন্নতি অহে, সব উন্নতি ক’ মূল ।
বিন নিজ ভাষা জ্ঞান কে, মিটত না হিয়ে ক’ শূল ‖”
এই দুটি ছন্দোবদ্ধ পদের মধ্য দিয়ে বিশিষ্ট কবি ভারতেন্দু হরিশচন্দ্র একজনের ব্যক্তিত্ব গঠনে মাতৃভাষার প্রয়োজনীয়তা ব্যাখ্যা করেছেন। সেই জন্য ভারতের সংবিধানে ২২-টি আধুনিক ভাষাকে স্বীকৃতি দেওয়া হয়েছে।
ভারত বিশ্বের দ্বিতীয় বৃহত্তম ইংরেজি শিক্ষিতের দেশ হতে পারে, কিন্তু তাই বলে এই আন্তর্জাতিক ভাষা অন্য ভারতীয় ভাষাকে একঘরে করে দেবে সেটা মেনে নেওয়া যায় না। যেহেতু ভারতে বেশিরভাগ ছাত্র মাতৃভাষাতেই লেখাপড়া করে, তাই জ্ঞানস্রোত ইংরেজিকে শিক্ষার একমাত্র মাধ্যম বলে মনে করে না। জ্ঞানস্রোত চায় বেশিরভাগ ছাত্র এডুটেকের সুবিধা পাক।
জ্ঞানস্রোতের সমীক্ষক, গবেষক দল দেখেছেন যে, বেশিরভাগ সময়ে ছাত্ররা যখন উচ্চ-মাধ্যমিক পড়তে যায়, তখন পঠন-পাঠনের ভাষা ইংরেজি হয়ে যায়। এর ফলে অনেক ছাত্রের ফল খারাপ হয়, এমনকি ভাল ছাত্রদেরও।
এই অসুবিধা এড়াতে জ্ঞানস্রোত মাতৃভাষা এবং ইংরেজি দুই ভাষাতেই পঠন-পাঠনের ব্যবস্থা রেখেছে উচ্চ-মাধ্যমিক ছাত্রদের জন্য, যাতে তারা পাঠ্যবস্তু মিলিয়ে নিতে পারে। নতুন নতুন শব্দ নিয়ে যাতে তারা অসুবিধে বোধ না করে। ক্লাসে তারা আরও আত্মবিশ্বাসী হয়ে ওঠে।
এটা তো ঠিক, যে ভারতের বিশ্বখ্যাত বেশিরভাগ পণ্ডিত মানুষের পড়াশোনা শুরু হয়েছিল কোন না কোন প্রধান ভারতীয় ভাষাতেই। প্রবাদেই তো আছে ‘যদি তুমি কোন ব্যক্তির হৃদয় ছুঁতে চাও, তাহলে তার ভাষাতেই তার সঙ্গে কথা বল। ’
गोबां अनजिमानि रावफोर
"निज भासा उन्नति आहाय सब उन्नति को मुल ।
बिन निज भासा गियान के, मिताथ न हिये को सुल ‖"
सासे राफोद खन्थाइगिरि भारतेन्द्र हरिसचन्द्रनि बे बुंनाय सान्थौआ फोरमायोदि गावनि बिमानि रावा सासे मानसिनि गियानखौ माबोरै मोनफुंनो हायो । जायनि थाखाय आथिखालाव भारतनि संबिधानआ गासै मोन 22 गोदानारि रावफोरखौ संबिधानारि राव महरै गनायथि होदों ।
मुलुगनि मादाव भारत हादरा इंराजी रावखौ मुंदांखा खालामनायाव नैथि सारियाव थानो हागौ । नाथाइ बे माहारियारि रावा जायगायावनो थाखानाय गोबां बिमा रावफोरखौबो गाहाय फारसे थांहोनो हाया। मानोना आथिखालाव भारतनि गोबां फरायसाफोरा गावबागाव आंगो बिमानि रावजोंनो सोलोंथाइ लायो ।बेनिफ्राय जों बुंनो हायोदि, इंराजी रावजों सोलोंथाइ लानानैल फरायसाफोरा गियानखौ मोननो हाया नाथाइ गावनि ओनसोलारि बिमानि रावजों फरायनानैबो गोदान मुगानि टेकनलजिफोरनि सायावबो सोलोंनो हायो।
दानिया नैबेखौ नाय। गियानस्रथनि नायबिजिरनायनि। गेजेरजों बेखौ नुनो मोनोदि बांसिन सामावनो गोबां फरायसाफोरा गोजौ फरायसालिफोरखौ गावनि बिमानि रावजों सोलोंनानै गोजौसिन फरायसालियाव थाङोब्ला इंराजी रावजों सोलोंहैनो गोनां जायो। जायनि जाउनाव फरायसाफोरनि सोलोंथाइयारि थासारिनि रोंगथि आरो फिथाइआ खमायलाङो।
बेफोरबायदि फिथाइ मोननायखौ नेवसिनो थाखाय गियानस्रथ गोजौसिन फरायसालिफोरनि थाखायबो इंराजीजों लोगोसे बिमानि रावजों सोलोंनो हानायनि राहा खालामनानै होदों जाहाथे गावनि बिमानि रावजों सोलोंनाय साफ्रोमबो फरायसाफोराबो सोदोब ओंथिफोरखौ बुजिनो हायो।जायनि थाखाय थाखो खथायाव फरायसाफोरा गोसो गुदुं जागोन।
गोबां बिथिङावनो गोरों जाखानाय सिनाय जानाय फरायसाफोरा गोबां सोलोंथाइ फसंथानफोराव गावबागाव बिमानि रावजों सोलोंथाइ होनो हायो। मोनसे बुंनाय बाथ्रा दं, जुदि सोरबा सासेनि गोसोनि बाथ्राखौ मिथिनो लुबैयो अब्ला बेजों बिमानि रावजों रायज्लायनो नांगोन।
બહુવિધ ભાષાઓ
“નિજ ભાષા ઉન્નતી યાહ, સબ ઉન્નતિ કો મૂળ ।
બિન નિજ ભાષા જ્ઞાનસ્રોત કે, મિતત એન હિયે કો સૂલ ‖”
આ મિત્રો દ્વારા, પ્રખ્યાત કવિ, ભારતેન્દુ હરિશ્ચંદ્ર ખૂબ જ સારી રીતે વ્યક્ત કરે છે કે વ્યક્તિની જાણકારીમાં માતૃભાષા કેટલી નિર્ણાયક બને છે. અને તેથી જ ભારતના બંધારણ દ્વારા 22 આધુનિક ભાષાઓને માન્યતા આપવામાં આવી છે.
ભારત વિશ્વનો બીજો સૌથી વધુ અંગ્રેજી-સાક્ષર દેશ હોઈ શકે છે, પરંતુ વૈશ્વિક ભાષાના આ જ્ઞાનને અન્ય ભારતીય ભાષાઓ પ્રત્યે રંગભેદની માનસિકતા ઉભી કરવાની મંજૂરી આપી શકાતી નથી. ભારતમાં મોટાભાગના વિદ્યાર્થીઓ હજુ પણ સ્થાનિક ભાષાઓમાં અભ્યાસ કરે છે, તેથી જ્ઞાનસ્રોત માત્ર અંગ્રેજીમાં જ સૂચનાનાં માધ્યમ તરીકે મર્યાદિત નથી, અને આમ મોટાભાગના વિદ્યાર્થીઓને અભ્યાસનો લાભ પ્રાપ્ત કરવાની મંજૂરી આપે છે.
ઉલ્લેખનીય છે કે જ્ઞાનસ્રોતના આર એન્ડ ડી સેલને જાણવા મળ્યું છે કે, મોટાભાગના સમયે, જ્યારે વિદ્યાર્થીઓ ઉચ્ચતર માધ્યમિકમાં જાય છે, ત્યારે તેમના અભ્યાસક્રમની ભાષા સ્થાનિક ભાષામાંથી અંગ્રેજીમાં બદલાય છે. આ બદલાવ શૈક્ષણિક પરિણામોમાં એક મોટો ઘટાડો કરે છે, હોશિયાર વિદ્યાર્થી માટે પણ.
આવા પરિણામોને નિવારવા માટે, જ્ઞાનસ્રોત ઉચ્ચ માધ્યમિક વિદ્યાર્થીઓ માટે સ્થાનિક અને અંગ્રેજીમાં વિષય સામગ્રી પૂરી પાડે છે, જેથી તેઓ તુલના કરી શકે અને નવી પરિભાષાઓમાં મુશ્કેલી ના અનુભવે. આમ, તેઓ વર્ગખંડોમાં વધુ આત્મવિશ્વાસુ બની શકે છે.
છેલ્લે, ભારતના મોટાભાગના વિશ્વ વિખ્યાત વિદ્વાનોએ એક મુખ્ય ભારતીય ભાષાઓમાં તેમનું શિક્ષણ શરૂ કર્યું. સારું તો કહેવત એ છે કે, "જો તમે કોઈ વ્યક્તિના હૃદયને સ્પર્શ કરવા માંગતા હો, તો તેની ભાષામાં વાત કરો."
कई भाषाएं
"निज भाषा उन्नति है, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल ‖”
इस दोहे के माध्यम से, प्रख्यात कवि, भारतेंदु हरिश्चंद्र बहुत अच्छी तरह से बताते हैं कि किसी व्यक्ति की साधना में मातृभाषा कितनी महत्वपूर्ण है। और इसीलिए 22 आधुनिक भाषाओं को भारत के संविधान द्वारा मान्यता दी गई है।
भारत दुनिया का दूसरा सबसे अधिक अंग्रेजी साक्षर देश हो सकता है, लेकिन वैश्विक भाषा के इस ज्ञान को अन्य भारतीय भाषाओं के प्रति रंगभेदी मानसिकता पैदा करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। चूंकि भारत में अधिकतर छात्र अभी भी स्थानीय भाषाओं में अध्ययन कर रहे हैं, ज्ञानस्रोत शिक्षा के एकमात्र माध्यम के रूप में खुद को अंग्रेजी तक सीमित नहीं रखता है, और इस प्रकार अधिकतर छात्रों को एडुटेक के लाभों को प्राप्त करने की अनुमति देता है।
गौरतलब है कि ज्ञानस्रोत के आर एंड डी प्रकोष्ठ ने पाया है कि ज्यादातर समय, जब छात्र उच्चतर माध्यमिक में स्थानांतरित होते हैं, तो उनकी पाठ्यक्रम भाषा स्थानीय भाषा से अंग्रेजी में बदल जाती है। यह संक्रमण शैक्षिक परिणामों में एक महान गिरावट पैदा करता है, यहां तक कि सबसे प्रतिभाशाली दिमाग के लिए भी।
ऐसे परिणामों से बचने के लिए, ज्ञानस्रोत उच्च माध्यमिक छात्रों के लिए स्थानीय भाषा के साथ-साथ अंग्रेजी में विषय सामग्री प्रदान करता है, ताकि वे तुलना कर सकें और नई शब्दावली से भ्रमित न हों। इस प्रकार, वे कक्षाओं में अधिक आत्मविश्वासी बन सकते हैं।
आखिरकार, भारत के अधिकतर विश्व-प्रसिद्ध विद्वानों ने अपनी शिक्षा प्रमुख भारतीय भाषाओं में से एक में शुरू की। वैसे कहावत है, "अगर आप किसी के दिल को छूना चाहते हैं, तो उसकी भाषा में बात करें।"
अनेक भाषा
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल ।
बिनु निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल ‖
प्रख्यात कवी भारतेंदु हरिश्चंद्र यांनी खूप चांगल्या प्रकारे सांगितले आहे कि एका व्यक्तीच्या परिपूर्ण विकासासाठी त्याची मातृभाषा कश्या प्रकारे आवश्यक आहे, आणि म्हणूनच भारतात २२ आधुनिक भाषा भारतीय संविधानाद्वारे मान्यता प्राप्त आहेत.
भारत हा जगातील दुसऱ्या क्रमांकाचा इंग्रजी साक्षर देश असेलही पण जागतिक भाषेचे ज्ञान इतर भारतीय भाषेबद्दल भाषा द्वेषी मानसिकता निर्माण करण्याची परवानगी देऊ शकत नाही. भारतातील बहुतांश विद्यार्थी आजही आपापल्या स्थानिक भाषेमध्ये शिकत असल्याने ज्ञानस्रोत इंग्रजीला केवळ शिक्षणाचे माध्यम म्हणून वापरत नाही. यामुळे बहुसंख्य विद्यार्थ्यांना शिक्षण तंत्रज्ञानाचा फायदा घेता येतो.
आम्ही सांगू इच्छितो कि ज्ञानस्रोतच्या संशोधन आणि विकास विभागाला असे आढळले आहे कि, बहुतेक वेळा जेव्हा विद्यार्थी उच्च माध्यमिक मध्ये जातात, तेव्हा त्यांच्या अभ्यासक्रमाची भाषा स्थानिक भाषेतून इंग्रजीमध्ये बदलते आणि याचमुळे शैक्षणिक निकालाच्या टक्केवारीत मोठी घट निर्माण होते. अगदी हुशार मुलांच्या निकाला मध्ये पण हा फरक असतो.
हा बदल टाळण्यासाठी ज्ञानस्रोत सर्व शैक्षणिक विषय स्थानिक तसेच इंग्रजी भाषेत उपलब्ध करून देतो. जेणेकरून विद्यार्थी शब्दांची तुलना करू शकतात आणि योग्य शब्दावली समजून घेऊ शकतात. अशा प्रकारे ते वर्गामध्ये आत्मविश्वासाने वावरतात.
शेवटी हेच सांगायचे आहे, अनेक जगप्रसिद्ध भारतीय विद्वानांनी त्यांचे शालेय शिक्षण एका मुख्य भारतीय भाषेमध्येच सुरु केले होते. म्हणतात ना, "जर तुम्हाला एखाद्या व्यक्तीच्या हृदयाला स्पर्श करायचा असेल तर त्याच्याशी त्याच्या मातृभाषेत बोला."
ଏକାଧିକ ଭାଷା
"ନିଜ୍ ଭାଷା ଉନ୍ନତିହେ, ସବ୍ ଉନ୍ନତି କୋ ମୁଲ୍।
ବିନ୍ ନିଜ୍ ଭାଷା ଜ୍ଞାନକେ, ମିତତ୍ ନ ହିୟେ କୋ ସୁଲ୍ ‖"
ଉକ୍ତ ପଂକ୍ତି ମାଧ୍ୟମରେ ଭର୍ତ୍ତେନ୍ଦୁ ହରିଚ୍ଚନ୍ଦ୍ର ମାତୃଭାଷା ର ମହତ୍ତ୍ୱ ବର୍ଣ୍ଣନା କରିଛନ୍ତି । ଏହାକୁ ଭିତ୍ତିକରି ପରବର୍ତ୍ତୀ ସମୟରେ 22ଟି ଆଧୁନିକ ଭାଷା ସାମ୍ବିଧାନିକ ଭାଷାରୂପେ ମାନ୍ୟତା ପାଇଥିଲା।
ଭାରତ ବିଶ୍ୱର ଦ୍ବିତୀୟ ବୃହତ୍ ଇଂରାଜୀଭାଷୀ ଦେଶ ହୋଇପାରେ,କିନ୍ତୁ ଏହି ବିଶ୍ବଭାଷାର ଜ୍ଞାନ ଅନ୍ୟ ଭାରତୀୟ ଭାଷା ଆଡ଼କୁ ବର୍ଣ୍ଣବୈଷମ୍ୟ ମନୋଭାବ ସୃଷ୍ଟି କରିବାକୁ ଅନୁମତି ଦେଇ ପାରେନାହିଁ ।ଏହା ପରେ ମଧ୍ୟ,ଅଧିକାଂଶ ଭାରତୀୟ ବିଦ୍ୟାର୍ଥୀ ଦେଶୀୟ ଭାଷାରେ ଏପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ଅଧ୍ୟୟନ କରୁଛନ୍ତି,ଜ୍ଞାନସ୍ରୋତା କେବଳ ଇଂରାଜୀକୁ ଅନୁଦେଶର ମାଧ୍ୟମରୂପେ କେନ୍ଦ୍ରୀଭୂତ କରେନାହିଁ । ଏହିପରି ଅଧିକାଂଶ ବିଦ୍ୟାର୍ଥୀଙ୍କୁ ଏଡୁଟେକର ସୁବିଧା ଉପଭୋଗ କରିବାରୁ ବଞ୍ଚିତ କରେ ।
ବର୍ତ୍ତମାନ ଏହାକୁ ନିରୀକ୍ଷଣ କରାଯାଉ, ଜ୍ଞାନସ୍ରୋତାର R&D ସେଲକୁ ଅଧିକାଂଶ ସମୟ ଦେଖିବାକୁ ମିଳିଛି ।ଯେତେବେଳେ ବିଦ୍ୟାର୍ଥୀମାନେ ଉଚ୍ଚ ମାଧ୍ୟମିକ ଶିକ୍ଷାକୁ ଅତିକ୍ରମ କରନ୍ତି, ସେମାନଙ୍କର ଭାଷାମାର୍ଗ ଦେଶୀୟ ଭାଷାରୁ ଇଂରାଜୀ ଭାଷାକୁ ପରିବର୍ତିତ ହୁଏ । ଯଦିଓ ଏହା ଚିନ୍ତାଧାରାର ଉଜ୍ଜ୍ବଳତାକୁ ସୂଚାଉଛି ତଥାପି ଏହା ଶୈକ୍ଷିକ ଫଳାଫଳକୁ ଏକ ଗଭୀର କ୍ଷତ ପହଞ୍ଚାଉଛି ।
ଏହି ଅସୁବିଧା ଦୂରେଇବାକୁ,ଜ୍ଞାନସ୍ରୋତା ଉଚ୍ଚ ମାଧ୍ୟମିକ ଶିକ୍ଷାର୍ଥୀଙ୍କ ପାଇଁ ଉଭୟ ଦେଶୀୟ ତଥା ଇଂରାଜୀ ଭାଷାରେ ପାଠ୍ୟକ୍ରମ ଯୋଗାଇଦିଏ । ତେଣୁ ସେମାନେ ତୁଳନା କରି ଶବ୍ଦକୋଷ ଦକ୍ଷତାକୁ ଛାଡିପରନ୍ତି ନାହିଁ । ଏହିପରି ଏମାନେ ଶ୍ରେଣୀ ଭିତରେ ଅଧିକ ଅତ୍ମବିଶ୍ୱାସୀ ହୁଅନ୍ତି ।
ମୋଟ ଉପରେ,ବିଶ୍ୱର ଅଧିକାଂଶ ଖ୍ୟାତିସମ୍ପନ୍ନ ଭାରତୀୟବିଦ୍ଵାନ ନିଜର ଶିକ୍ଷା କୌଣସି ଏକ ଦେଶୀୟଭାଷାରୁ ଆରମ୍ଭ କରିଛନ୍ତି । ଯଦି ତୁମେ ତାଙ୍କ ହୃଦୟ ନିକଟରେ ପହଞ୍ଚିବାକୁ ଚାହୁଁଛ ତେବେ ତାଙ୍କ ଭାଷାରେ କଥାହୁଅ ।